सुबह की पहली किरण जब मुझमे पड़ती है,
एक खौफ सा लग जाता है,
मन में एक अनहोनी की आशंका लगती है,
सुबह की पहली किरण जब मुझ पे पड़ती है..
जब मै दफ्तर के लिए निकलता हूँ,
एक डर सा लगता है,
हर दिन जिसके साथ सफर करता हूँ,
क्यूँ वो चेहरा बदला सा लगता है..
इस भीड़ में मुझे हर कोई अपना सा लगता है,
तो कोई क्यूँ मुझे इनसे अलग करता है..
हर सुबह एक डर सा लगता है..
नीला आकाश पहनकर वह,
सौदे की ज़मीं पे चलता है
और हमे एक खौफ जगा देता है,
सुबह की पहली किरण जब मुझ पे पड़ती है,
एक खौफ सा लग जाता है..
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