देशभर में बढ़ते
भ्रष्टाचार पर उठ रही आम जनता की आवाज की कहानी पे बनी ये फिल्म अन्ना हजारे के वो
तेराह दिनों की याद दिला देता है जिसने भारत की जनता को जागरूक कर दिया.अन्ना
हजारे का करप्शन के खिलाफ अनशन और जन लोकपाल आंदोलन, जो उन्होंने देशभर में जगाया। लेकिन अच्छी खासी कहानी को झा कही और ही ले गए.
फिल्म की शुरुवात
होती है भोपाल के अंबिकापुर से.द्वारका उर्फ दादूजी अमिताभ बच्चन अंबिकापुर में
उसूलों वाले स्कूल टीचर हैं, जो ना सिर्फ अपने
उस उसूल पे चलते है साथ ही साथ लोगों को भी उन उसूलों पे चलने की शिक्षा देते है.मानव
यानी अजय देवगन उनके बेटे के दोस्त रहते है.सिस्टम को लेकर मानव और द्वारका दोनों
के विचार अलग होते है और इसी पे दोनों पे बहस भी होती है जिसके कारण मानव रात को
ही उनका घर छोड़ देता हैं.फिल्म की असली शुरुवात तब होती है जब द्वारका कलेक्टर पर
हाथ उठाने के लिए गिरफ़्तार कर लिया जाता है.मानव मदद के लिए आता है और एक युवा
नेता अर्जुन रामपाल है अमृता राव के साथ सोशल कैंपेन शुरू करता है, जिसे लीड कर रहे होते हैं द्वारका जो सरकार की
चाल-ढाल को साफ करने और आम आदमी को और पॉवरफुल बनाने की डिमांड करता है।
उनकी ये मुहिम
में जान तब आती है। जब ABP की टीवी पत्रकार
यास्मीन अहमद यानी करीना कपूर खां इसकी रिपोर्टिंग करती है। झा सारे इवेंट को ठीक
उसी तरह जोड़ते है जैसे अन्ना के आन्दोलन के समय हुआ था अरविन्द केजरीवाल से अन्ना
का जुड़ना,मनीष सिसोधिया,कुमार विश्वास और पूर्व आईपीएस किरन बेदी का अन्ना को
समर्थ देना सब कुछ ठीक उसी कि तरह चलता है कि यही पे बॉलीवुड का रंग नज़र आ जाता है
और आन्दोलन को छोड़ झा मानव और यास्मीन के बीच रोमांस दिखा देते हैं। 'सत्याग्रह’ की शुरुआत रियलिस्टिक फिल्मों की तरह होती है पर एक घिसी पिटी
कहानी की तरह खत्म हो जाती है..
( एक तरह से मुझे लगता है की ये फिल्म चुनाव के पहले लोगों को “आप” का इतिहास बता रही है और उनका चुनाव प्रचार कर रही हैं.)
( एक तरह से मुझे लगता है की ये फिल्म चुनाव के पहले लोगों को “आप” का इतिहास बता रही है और उनका चुनाव प्रचार कर रही हैं.)
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