2014 को लोक सभा चुनाव को नज़र में रकते हुए कांग्रेस का खाद्य सुरक्षा बिल
सोमवार पास हो गया.पिछले वर्ष के शीतकालीन सत्र से मानो सरकार बस इसी बिल को कानून
बनाने के पीछे तत्पर थी। और हो भी क्यों न, यही बिल तो कांग्रेस को पुनः सत्ता में वापस ला सकता है।
जिस प्रकार पिछली बार ऋण माफ़ी से करिश्मा हुआ था इस बार भी उनकी यही अपेक्षा है।
अन्यथा क्यों इस बिल को चुनाव से 6 माह पूर्व लागू कराया जा रहा है।
जबकि यूपीए सरकार ने तो इसे सत्ता (२००९) में आने के १०० दिन के अन्दर लागू
करने का वादा किया था ? पर अगर राजनीति को अलग रख कर देखें तो क्या वास्तव में हमें
इस बिल की कोई आवश्यकता है? हाँ सुनने में तो ये बिल बहुत ही हितकारी
लगता है। एक ऐसे देश में जहाँ पर विश्व के सबसे अधिक भूखे लोग रहते हैं, उस जगह पर इस कानून से बेहतर और क्या हो
सकता है? सबको आहार मिलेगा, कोषागार में रखा अनाज नष्ट नहीं होगा और
किसान भी खूब तरक्की करेंगे। पर हकीकत इतनी सुहावनी नहीं है। खाद्य सुरक्षा कानून
बन जाने से देश की दो तिहाई आबादी को सस्ता अनाज मिलेगा।
देश में बढ़ते भ्रष्टाचार को देख के अब नहीं लगता की सरकार की ओर से बनाया गया
कोई भी बिल अब आम जनता के हित में है और उनके लिए लाभ दायक है।
अगर आकार को देखा जाये तो विश्व के एक तिहाई भूखे लोग भारत में रहते है.
कांग्रेस के शासन में बहुत कम ही ऐसी योजना बनी है जो सफल रही है,अगर सरकार सच
में ये योजना आम जनता के लिये बनाई है तो इसे सीधा आम लोग के बीच वितरित करे जिससे
इस योजना में कोई दलाली या घोटाला न हो सके ठीक उसी तरह जैसे घरेलू गैस में किया
जाता है.
रुपया हर दिन रिकार्ड गिरावट दर्ज कर रहा है। हमारा वित्तीय घाटा दिन प्रति
दिन बढ़ता जा रहा है,और यहां पर नया विदेशी निवेश भी न के बराबर हो गया है।अर्थविशेषज्ञों
के मुताबिक इन सब के लिए हमारी कमज़ोर होती अर्थव्यवस्था ज़िम्मेदार है,और इस
स्थिति में वो खाद्य सुरक्षा बिल का माली बोझ सँभालने योग्य नहीं है। क्योंकि
हमारे पास इसे चलाने के लिए तो कोई धन है नहीं । सहजतः हमें इसके लिए ऋण लेना
पड़ेगा और इससे हमारा वित्तीय घाटा और अधिक बढ़ जायेगा।
सरकार को चाहिए कि वो इस बिल को इस तरह संतुलित करे कि गरीबों का पेट भी भर
जाये और साथ ही में अर्थव्यवस्था को भी हानी न पहुंचे।