भाषा,चाहे वो हिंदी हो,अंग्रेजी हो,उर्दू हो या कोई अन्य जरुरी सब है| हम बचपन में हर भाषा सिकते है जो हमारे लिए जरुरी है.जिसे हम अपने दैनिक जीवन में बोलते है| हर बच्चा पैदा होते ही मौम या डैड नहीं बोलता पहला शब्द जो होता है वो माँ होता है और जब उसे उसके घर वाले भाषा का ज्ञान देते है तो सबसे पहले उसे उसकी मातृ भाषा ही सिखाते और बताते है| जब वो स्कूल में दाखिला लेता है तब वो भाषा के बारे में पूरी बात जानता उसी अंग्रेजी भाषा के बारे में बताया जाता है पढाया-लिखाया जाता है,अंग्रेजी में दोस्तों से,घर वालो से,शिक्षक से बात करने के लिए बोला जाता है,यहाँ तक ये भी होता की अगर उसने स्कूल कैंपस में या अंग्रेजी के पीरियड में हिंदी बोला तो जुर्माना भी देना पर सकता है| एक डर भी बना रहता है अंग्रेजी बोलने का| क्यूँ ?
इसलिए क्यूँकी अंग्रेजी भाषा रोजगार की भाषा है और रोजगार से जुडी है| इससे रोजगार जुड़ा है अंग्रेजी भाषा हमे समाज में एक क्लास देता है इससे हमारा स्टैण्डर्ड भी बढता है पर हिंदी से नहीं? क्यूँ की हिंदी भाषा को रोजगार से नहीं जोड़ा गया है ये सिर्फ हमारी दैनिक जीवन की भाषा ही बन के रह गई है| जिस दिन हिंदी को रोजगार से जोड़ दिया जाएगा और हिंदी न बोलने पे भी जुर्माना लिया जायेगा उस दिन से हिंदी भी उतनी ही जरुरी हो जाएगी जितनी की आज अंग्रेजी है...हर एक भाषा की हमे जरुरत है कोई हिंदी समझता है कोई अंग्रेजी कोई ऐसा भी है जो इन दोनों में कुछ नहीं समझता बस अपनी ही भाषा समझता है चाहे वो उर्दू हो बांग्ला हो तमिल हो या फार्सी हो ..कुछ भी...
आज हिंदी पिछड़ी भाषा में गिनी जा रही है| क्यूँ ?
क्यूँकी हम इससे अपनाना नहीं चाह रहे है आज हम प्रणाम के जगह ही हेल्लो बोल माँ के जगा मॉम और पापा के जगह डैड बोलना ज्यदा पसंद कर रहे है| हर भाषा का प्रयोग वहा करनी चाहिए जहा उस भाषा की जरुरत है बिना मतलब की किसी के सामने अंग्रेजी में बोले जा रहे हो या हिंदी में बोले जा रहे हो पर सामने वाला आपकी बात को समझ ही नहीं पा रहा है तो क्या फयदा ऐसी भाषा बोलने से| हम भाषा इस लिए बोलते है ताकि सामने वाला आसानी से बातो को समझ सके|
भाषा से भी हमारी पहचान है किसी को अपनी पहचान खोना पसंद नहीं है .