Thursday, October 8, 2015

बिहार विधानसभा चुनाव में 'पार्टियां ही पार्टियां'


बिहार के चुनावी मैदान में इस बार ‘पार्टियां ही पार्टियां’ दिखती नजर आ रहीं हैं. ये पार्टी कोई गाने-बजाने वाली पार्टी नहीं बल्कि राजनीतिक पार्टियां हैं. मजा तो यह की इनके नाम, नारे, झंडे सब रंगारंग हैं.

बिहार की राजनीति में आए राजनीतिक समीकरण में राज्य के तमाम दिग्गज अपनी-अपनी अलग पार्टी बना कर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं . इन दिग्गजों में जद (यू) से अलग हुए पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हिन्दुस्तान अवाम मोर्चा (हम), केंद्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, लालू के राजद से अलग हुए सासंद पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी, पूर्व सांसद साधु यादव का जनता दल सेक्यूलर, पूर्व केन्द्रीय मंत्री नागमणि की समरस समाज पार्टी भी चुनावी मैदान में हैं.

हालांकि इनमें से कई ने दबाव बनाकर बड़ी पार्टियों से समझौता कर लिया है, पर इनके बारे में जानना कम रोचक नहीं है. 

बड़ों को देख छोटे भी मैदान में

बिहार के चुनावी मैदान में GAP भी होगें । GAP  यानी के गरीब आदमी पार्टी । GAP के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्याम भारतीय हैं और इनका चुनाव चिन्ह है ‘सीटी’.  श्याम भारतीय ने अपने पार्टी के प्रचार के लिए लोगों को टिकट देने के लिए अपने वेबसाइट पर आमंत्रण भी दे रखा है.  हर आने वाले से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष कहते हैं- 'सीटी बजाओ, चोर भगाओ'.

गरीब आदमी पार्टी ने सोलहवीं लोकसभा चुनाव के दौरान पूरे देश में 11 प्रत्याशी उतारे थे । महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर और झारखंड के विधानसभा चुनावों में भी GAP ने अपने प्रत्याशी उतार चुके है । अब GAP बिहार की तैयारी में है । 

इसी साल यानी 2015 में एक पार्टी रजिस्टर्ड हुई है, जिसका नाम है सदाबहार पार्टी । इस पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश यादव ने बिजली विभाग की नौकरी छोड़ खुद की पार्टी बनाई है । पार्टी के नाम के सवाल पर ओमप्रकाश कहते है, ''हमारी पार्टी सबके लिए है, किसी जाति या वर्ग विशेष के लिए नहीं। 

यह सदाबहार पार्टी है, जो सबको अपने साथ जोड़ लेती है. '' इसके अलावा 'जनता राज विकास पार्टी', 'भारत निर्माण पार्टी', 'राष्ट्रीय समानांतर दल', 'जवान किसान मोर्चा' जैसे नामों वाली दर्जनों पार्टियां चुनावी मैदान में हैं। इन तमाम पार्टियों के बीच BAAP भी है BAAP यानी के 'भारतीय आम आवाम पार्टी' है. 

लेकिन अंग्रेज़ी में छोटा करने पर ये 'बाप' बन जाता है । इसके नेता उमेश कहते है, ''हिंदी में हमने नाम बिना सोचे-समझे रख दिया, लेकिन अंग्रेज़ी में देखा तो ये 'बाप' था. अब नाम रख ही लिया है तो हम सब पार्टियों के 'बाप' बनकर दिखाएगें.''

खुद ही लगाना पड़ता है पैसा

इन पार्टियों से लड़ने वालें उम्मीदवारों को खुद ही पैसा लगाकर चुनाव लड़ना पड़ता है । ठीक वैसे ही जैसे की निर्दलीय उम्मीदवार लड़ते है । अंतर की बात यहीं है कि पार्टी से लड़ने पर आपको कई एक पहचान और कई लोगों का साथ मिल जाता है । ये पार्टियां चुनाव लड़ने के लिए फंड नहीं दे सकतीं, लेकिन टिकट चाहने वालों की भीड़ इनके यहां भी कम नहीं.

छोटी पार्टी की एंट्री

दरअसल, बिहार के चुनावों में छोटी-छोटी रजिस्टर्ड पार्टियों की दस्तक बढ़ती जा रही है. साल 1995 में छोटी पार्टी की संख्या जहां 38 थी , वहीं साल 2000 में 31 हो गई, पर साल 2005 ये फिर बढ़कर 40 और साल 2010 आते-आते 72 हो गई.

Monday, October 5, 2015

जमालपुर विधान सभा: जहां विकास है अहम मुद्दा

बिहार में चुनावी डंका बज चुका है, लिहाज़ा राजनीतिक दलों ने विधानसभा चुनाव की तैयारी और जोर-शोर के साथ शुरू कर दी है । सत्तारूढ़ जद (यू), राजद, कांग्रेस सहित विपक्षी दल बीजेपी और लोजपा व अन्य अपनी-अपनी रणनीति बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहें । बिहार के योग नगरी मुंगेर की अगर बात करें तो यहां भी राजनीतिक तापमान साफ दिखाई दे रहा है । राजनीतिक परिदृश्य कुछ-कुछ बदला-बदला सा नज़र आ रहा है । जिलें के विधानसभा क्षेत्र और सीटों पर नजर डालें तो ज़िले की तीन विधानसभा सीटों में से दो पर राजद का क़ब्ज़ा है और एकमात्र लोह नगरी जमालपुर विधानसभा क्षेत्र जद (यू) के खाते में है।

सीट का चुनावी इतिहास
इस सीट का चुनावी इतिहास देखा जाए तो यह सीट जनता परिवार की पुश्तैनी सीट जैसी है । 1980 के बाद से ही जनता दल, एलकेडी और आरजेडी के टिकट पर लगातार पांच बार उपेंद्र प्रसाद वर्मा जमालपुर से विधायक रहें । पर, साल 2005 के चुनावों में जद (यू) के शैलेश कुमार ने उपेंद्र को हराकर यह सिलसिला तोड़ दिया। साल 2010 के बिहार 
विधानसभा चुनावों में भी शैलेश कुमार ने एलजेपी की साधना देवी को करीब 27 हज़ार वोटों से हराया ।

विकास की राह से दूर हैं जमालपुर
विकास की राह पर आज भी जमालपुर काफी पीछे ही दिखाई देता है । जमालपुर विधानसभा क्षेत्र वर्तमान में जद (यू) के क़ब्ज़े में है। शैलेश कुमार यहां के विधायक हैं। पिछले 25 वर्षों से इस सीट पर क़ाबिज़ राजद के उपेंद्र प्रसाद वर्मा को जमालपुर की जनता ने जिस उद्देश्य से गद्दी से उतार कर शैलेश कुमार को मुकुट पहनाया था, वह सत्ता के गलियारों में कहीं खो गया । जमालपुर की जनता ने जिस उम्मीद से शैलेश कुमार को जीत का ताज पहनाया था, कुमार उस उम्मीद पर खरें नहीं उतर पाए । जमालपुर में रेल इंजन कारखाना होने के बावजूद यहां के लोगों के पास रोजगार नहीं हैं । लोगों का कहना है कि शिक्षा के क्षेत्र में भी पीछे है, सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षक की कमी है । प्रकृतिक खूबसुरती है जिससे रोजगार के उपयोग में लाया जा सकता है,पर उसमें भी सरकार की कोई नजर नहीं हैं । सरकार इन सबसे परे है ।

जातीय और राजनीतिंक समीकरण
जमालपुर विधानसभा क्षेत्र के बरियारपुर प्रखंड की 11 पंचायतें अब मुंगेर विधानसभा क्षेत्र में आ गई हैं, जिससे मुंगेर सहित जमालपुर का जातीय और राजनीतिक समीकरण बदल गया है। नए जातीय समीकरण में कोयरी, कुर्मी, भुमिहार,पासवान और धानुक मतदाताओं के जुटने से जद (यू) का पलड़ा भारी लग रहा है, लेकिन पार्टी के अंदर मचे घमासान और लालू के साथ गठबंधन का असर विधानसभा चुनाव पर पड़ने की उम्मीद है जिससे परिणाम चौंकाने वाले हो भी सकते हैं।

चुप औऱ आक्रमक वोटर
जमालपुर के लोग भले ही अपने विधायक के नाराज हो पर नीतीश कुमार को लेकर यहां को लोगों में कोई खास गुस्सा नहीं हैं । शहर में व्यापार कर रहें युवा मनीष कुमार बताते हैं कि नीतीश ने पीछले दस सालों में काम तो अच्छा किया हैं चाहें वो शिक्षा के क्षेत्र में हो या विकास के क्षेत्र में । हां रोजगार के क्षेत्र में कमी रही है पर उम्मीद कायम हैं । वोट किसे देंगे इस सवाल पर वो कहते है लोकसभा चुनाव से मोदी लहर कायम है । मोदी जी देश-विदेश में चरचा में रहते आए हैं । मोदी जी के पीएम बनने से भारत को एक नई पहचान मिली ठीक वैसे ही नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने से बिहार को एक पहचान मिली हैं ।

यहीं सस्पेंस इस चुनाव की खासियत है और कई वोटर एऩडीए और नीतीश को बेचैन करने में लगे हैं । लोगों का यह भी कहना है कि बिहार में फिर से जंगल राज नहीं चाहते ऐसे में लालू के समर्थक भी कम देखने को मिल रहें हैं । लोगों की मानें तो इस क्षेत्र में कड़ी टक्कर लोजपा के प्रत्याशी हिमांशु कुंवर और जद (यू) नेता शैलाश कुमार के बीच हैं । आने वाले 12 तारीख को मतदाता आपने मत का प्रयोग करेंगें ।