Monday, February 25, 2013

कलमकार : मीडिया और भाषा पे बातचीत

कलमकार द्वारा आयोजित कार्यक्रम मीडिया और भाषा पे बातचीत में मैंने भी भाग लिया  और इस कार्यक्रम का हिस्सा बना मुझे गर्व है की मैं bl मुहीम में कलमकार के साथ जुड़ा हूँ और आगे भी जुड़ा रहूँगा । सभी दिग्गजों  को सुना उनकh बातों को समझा,मै नकवी जी की बातों से बिलकुल सहमत हूँ उनका कहना था की जब हम किसी के संचारित करते है या बातचीत करते है और उनके सामने अपने शब्दों को रखते है तो हम ये देखते है की हमे सुनने वाला कैसा है क्या वो मित्र है या शिक्षक है या कोई बुजुर्ग ताकि हम अपने शब्दों उनके सामने आशानी से उनकी ही शब्दों में रख सके जिससे वार तालाप करने  में आशानी हो और सही तरीके बातचीत हो जाये । वही अलोक सर कहना था की भाषा को रोजगार से जोड़ना बहुत ही जरुरी है रोजगार भाषा को आगे तक ले जाएगी । अलोक जी ने तो ये भी कहा की संपादको को तो आगे बढ़ना चाहिए मीडिया से जुड़े कुछ पुराने लोग और जुड़ रहे नए युवा  पीढ़ी जो अंग्रेजी से हिंदी में आये उनके लिए एक हिंदी वर्कशॉप होनी चाहए जिसमे हम सब (संपादक) उनके थोड़ी हिंदी शब्दों का ज्ञान और मीडिया में चली आई रही शब्दों के बारे में उन्हें  बता सके । हिंदी पे काम कर रहे राहुल जी बड़े ही अलग अंदाज़ में कहा की जो भाषा (हिंदी ) दिल्ली में बोली जा रही है सच कहु तो भाषा का बलात्कार किया जा रहा है जिसमे मीडिया भी शामिल है मीडिया में  कई ऐसे एंकर है जो एंकरिंग करते वक़्त बीच- बीच में हिंदी से इंग्लिश और हिंगलिश में बोल जाते है ये भाषा का अपमान है।राहुल जी ने बहुत अच्छी बात कही अगर हम कोशिश करे तो हम अपनी भाषा को बचा सकते है ।वही मास्को मीडिया में बौतर शिक्षक काम कर चुकी ऋतू जी ने दिग्गजों के सामने अपना प्रशन रखा उनका कहना था मीडिया में साहित्य की भाषा का प्रयोग कम होती है मीडिया ऐसी भाषा का प्रयोग करता है जो की आम लोगो के साथ आशानी से किया जा सके और लोग उनको जल्द ही समझ सके अगर कहा जाये तो वो भाषा जो में अपनी दैनिक जीवन हम  बोलते है।उनका ये भी कहना था  उत्तर भारत से यहाँ (दिल्ली ) पत्रकारिता की पढाई करने आए बच्चो के साथ भाषा को लेकर दिक्कते आती है तो उन्हें उनकी  भाषा और अपनी भाषा दोनों को मिला के चलना पड़ेगा। मीडिया में प्रवेश से पहले भाषा में पकड़ बहुत ही जरुरी है ।
जहा तक मीडिया में प्रयोग हो रही भाषा की बात है तो इसके कई कारण  है एक  कारण तो  बढती टेक्नोलॉजी भी है जिनके साथ भाषा को लेकर चलन पड़ेगा।ये कहना गलत नहीं होगा की मीडिया से हम बहुत कुछ सीखते है जिसमे भाषा भी आती है और खास कर के हिंदी मीडिया  जिसमे प्रिंट मीडिया यानि की अकबार और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया टी वी ये दोनों में भाषा और शब्दों के बारे में बताती है । आशुतोष जी का कहना था की भाषा को अगर कोई आगे ले जा रहा है तो वो है हिंदी सिनेमा ने क्रांति लाई है उन्होंने इस बात पे भी जोड़ दिया की जब तक टेक्नोलॉजी के साथ हम नहीं जुड़ेंगे  तब तक  भाषा का कोई भविष्य नहीं है,उनका ये भी कहना था की आप शब्दों का प्रयोग हर जगह करे पर अगर आप उर्दू में लिख रहे है तो वह उर्दू का प्रयोग ही करे, हिंदी में लिख रहे है तो हिंदी शब्द ही लिखे और अगर अंग्रेजी में लिख रहे है तो अंग्रेजी शब्दों का ही प्रयोग करे ।
हिंदी को लेकर हम सब सोच रहे है मीडिया भी सोच रहा  है । मीडिया  को  भाषा और शब्दों का सही जगह पे सही शब्द उपयोग करने के लिए  थोड़ी और मेहनत या कहिए थोड़ी और जोड़ लगानी पड़ेगी।




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