Wednesday, September 7, 2011

क्या तुम ही हो मेरे सपनो की अफसरा...

तुमसे मिलके मुझे न जाने क्यूँ ऐसा लगा,
क्या तुम ही हो मेरो सपनो की अफसरा.
मन ने कुछ महसूस किया,
दिल में कुछ आहट सी हुई,
कानो ने तुम्हारी गुन गुनाहट सुनी....
तुम्हे अपने करीब पाके,
न जाने मुझे कुछ ऐसा लगा ....
क्या तुम ही हो मेरे सपनो की अफसरा ?

तुम्हारी वो पहली नज़र,
तुम्हारी वो शर्माहट,
न जाने क्यूँ छु गई मेरे दिल को |
क्या तुम्हारे दिल ने भी तुमसे कहा ..?
क्या तुम ही हो मेरे सपनो की अफसरा..

सपनो से अलग हो के,
मैं हकीकत में आता हूँ,
फिर भी क्यों ये मुझे एक सपना सा लगता है..
क्यूँ मेरा दिल ये पूछता है...
क्या तुम ही हो मेरे सपनो की अफसरा....



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