Sunday, March 13, 2016

रेल बजट 2016-17 : बजट नहीं, फाइव ईयर प्लान !

 गांधी जी के संघर्षो का आगाज रेलगाड़ी से हुआ था। ऊंचे दर्जे वाले डिब्बे से निकाल फेंकने की घटना ने गांधी जी के अंत:मन में आजादी का बिगुल बजाया। उनकी त्वरित लड़ाई इस बात पर थी कि जायज़ टिकट होने के बाद भी उन्हें उस डिब्बे से क्यों उतार दिया गया, क्यों उनका सामान फेंक दिया गयादेखा जाए तो हालात आज भी कुछ ऐसे ही है, कन्फर्म टिकट होने के बावजूद यात्री आरामदायक सफर नहीं कर पाते है ट्रेनों की कमी और बुनियादी सुविधाएं न होना इसका एक मुख्य कारण है!

बजट यानी के आय-व्यय का वो लेखा जोखा जो हर साल संसद में पेश होता है। संसद से लेकर सड़क तक, पान की गुमटी से लेकर घर के आंगन तक चर्चा में रहता है। हाल ही में सुरेश प्रभु ने रेल बजट पेश किया। रेल बजट से सभी को बेहतर रेल सेवाओं की उम्मीद रहती है, पर लोग आमतौर पर उन दिक्कतों से परिचित नहीं होते जिनसे भारतीय रेल को जूझना पड़ता है। सरकार एक तरफ तो बुलेट ट्रेन दौड़ा लेने का सपना देखती हैं और दूसरी तरफ रेलगाड़ियों के अगले-पिछले हिस्से में लगे इक्के-दुक्के जनरल डिब्बों की तस्वीर देखते हैं तो यह बात समझ नहीं आती कि महात्मा गांधी देश में जिस अंतिम व्यक्ति के उदय की बात करते थे, वह तो अब भी उसी डिब्बे में कुचा हुआ है।

अपने बजट के शुरुआत में प्रभु कहते हैं मेरे मन में सवाल उठता है- हे प्रभु, ये कैसे होगा? प्रभु ने तो जवाब नहीं दिया, तब ये प्रभु ने सोचा कि गांधी जी जिस साल भारत आए थे, उनकी शताब्दी वर्ष में भारतीय रेलवे को एक भेंट मिलनी चाहिए कि परिस्थित बदल सकती है, रास्ते खोजे जा सकते हैं, इतना बड़ा देश, इतना बड़ा नेटवर्क, इतने सारे रिसोर्सेस, इतना विशाल मेनपॉवर, इतनी स्ट्रॉंग पॉलिटिकल विल, तो फिर क्यों नहीं हो सकता पुनर्जन्म

प्रभु के इन शब्दों से ये तो समझ आ गया था कि ये बजट नहीं बल्कि भारतीय रेल का फाइव ईयर प्लान होगा। यह कहना गलत नहीं होगा कि रेलवे मानचित्र धमनियों का एक ऐसा नेटवर्क है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के दिल में जीवनदायी रक्त को संचरित करता है। सामाजिक-आर्थिक विकास में भूमिका निभाने के कारण रेलवे देश को जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण अंग है। यह एक ऐसी संस्था है, जो हमें आम भारत से मुखातिब कराती है। शायद यही वजह थी कि बापू ने रेलगाड़ी के माध्यम से भारत को खोजने और देखने का निर्णय लिया। मोदी सरकार की मानें तो पिछले कुछ दशकों में रेलवे में ज्यादा कुछ नहीं बदला है। इसका एक मुख्य कारण यह है कि रेलवे में लंबे समय से लगातार कम निवेश हुआ, जिसके कारण भीड़ बढ़ी और क्षमता का अति दोहन हुआ। इसका असर रेलवे के कामकाज और सेवाओं पर दिखता है। आज रेलवे की पूरी व्यवस्था ही चरमरा गई है।

अगले पांच सालों पे नजर डालें तो भारतीय रेल की प्राथमिकता इस बात पर होगी कि मौजूदा नेटवर्क क्षमता में सुधार करने के साथ उसे और कैसे बढाया जाये। इसमें दोहरीकरण, तिहरीकरण और विद्युतीकरण पर जोर दिया जाएगा साथ ही औसत गति बढ़ेगी और गाड़िया समय से चलेंगी। मालगाड़ियों को भी समय से चलाने पर जोर दिया जाएगा।
सरकार का कहना है कि आगामी पांच वर्ष में रेल को कायापलट होगा। जिसके लिए भारतीय रेल ने कुछ लक्ष्य निर्धारित किए है
  •     ग्राहक के अनुभव में स्थायी और अमूलचूल सुधार लाना ।
  •   रेलवे को यात्रा का सुरक्षित साधन बनाना ।
  •   भारतीय रेलों की क्षमता में पर्याप्त विस्तार करना और इसको आधुनिक बनाना।
  •   रेल प्रशासन में पारदर्शिता स्थापित करना ।

यात्री रेल यात्रा को आरामदायक बनाना चाहते हैं। प्रभु ने डिब्बों का नवीनीकरण करके यात्रियों को कुछ राहत देने की कोशिश किया सरकार ने रेल डिब्बों के ऊपरी बर्थ पर चढ़ने के लिए सुविधाजनक सीढियां की व्यवस्था करने का फैसला लिया। वहीं पिछले रेल बजट में जोर-शोर के साथ चर्चा में रही 90 मिनट में दिल्ली से आगरा तक की दूरी तय करने वाली सेमी बुलेट ट्रेन पर इस बार कुछ खास चर्चा नहीं हुई। विशेष परियोजनाओं जैसे कि मुंबई-अहमदाबाद के बीच हाई स्पीड की रेल गाड़ियां चलाने पर भी सरकार ने जोर देने की बात कही है। प्रभु ने कहा कि यह परियोजना अंतिम चरण में है और इसकी रिपोर्ट इस साल के बीच में आने की उम्मीद है।

रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने अगले पांच वर्ष में 8.5 लाख करोड़ रुपए का निवेश करने का विचार किया है। लेकिन इन सब के बीच प्रभु उन हकीकतों से दो-चार नहीं हुए, जिनसे हमारा-आपका रोजाना पाला पड़ता है। इस सरकार ने पिछले साल जब पूरी दुनिया में तेल के दाम बेतरह गिर रहे थे, तब भी रेल यात्री भाड़ा बढ़ाया था। आलम यह था कि प्लेट्फार्म टिकट जहां पांच रुपए प्रति व्यक्ति था अब वो दस रुपए हो गए है। कुछ महीने पहले ही सरकार ने रिजर्वेशन कराने की सुविधा नब्बे दिन से बढ़ा कर 120 दिन कर दी थी, पर टिकट आपको वेटिंग के ही मिलने थे। आलम यह है कि जहां आपको एचओ यानी के हेड ऑफिस कोटे तक की गारंटी नहीं वहां अगर आप एजेंट से टिकट खरीदते हैं, तो आप दूसरे दिन का कन्फर्म टिकट आसानी से मिल जाता है।

सरकार कहती है, 2020 तक यात्री जब चाहे, तब उसे टिकट मिलेगा। 2020 तक 95 फीसदी ट्रेनें राइट टाइम पर चलाने का टारगेट है । सरकार के इस रेल बजट 2016’ को फाइव ईयर प्लान कहना गलत नहीं होगा । रेलमंत्री ने यात्री ट्रेन की औसत स्पीड 80 किमी प्रति घंटे करने का लक्ष्य तय किया पर कोई समय सीमा नही बताया। महिलाओं के लिए 24 घंटे हेल्पलाइन नंबर – 182 की बात कही गई, रेल केटरिंग को सुधारने की बात की गई।
सुरेश प्रभु ने अपने बजट भाषण के शुरुआत में यह साफ कहा कि रेल बजट में पीएम मोदी का विजन है। प्रभु ने पीएम का धन्यवाद करते हुए व्यक्तिगत रुप से उनके प्रति आभार प्रकट किया। रेल मंत्री का दावा है कि यात्री की गरिमा, रेल की गति और देश की प्रगति हमारा लक्ष्य है। यह बजट भारत के आम लोगो की हसरतों का आइना है। क्या वाकई ऐसा हैअगर हां ! तो हे ! प्रभु हमें जल्द ही इस आइना से रू-ब-रू कराए। ऐसे दौर में जब महंगाई का तीर और लगातार ऊपर जाने को उतारू हो, तब कम से कम यही काफी होगा कि अच्छे दिनआएं न आएं, बुरे तो नहीं ही आएंगे। जैसे दिन गुज़र रहे हैं, वैसे ही गुज़रते रहेंगे। आम आदमी के दिन आसानी से नहीं बदलते, आम आदमी की समस्या ट्वीट करने से भी हल नहीं होतीं, अदद तो वह बेचारा ट्वीट ही नहीं कर पाता, इसलिए उसके बारे में तो अलग से ही सोचना होगा। अब देखना यह है कि अच्छे दिन लाने वाली सरकार ऐसे लोगों के लिए आने वालें दिनों में क्या नया और अलग कर पाती है।

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