Wednesday, March 30, 2016

आरएसएस ड्रेस नहीं,सोच बदलें

आरएसएस ने ऐतिहासिक मेकओवर करते हुए 13 मार्च को अपने 90 साल पुराने ड्रेस कोड को बदल दिया। अब स्वयंसेवक खाकी हाफ पैंट की जगह भूरे रंग की फुल पैंट में नजर आएंगे। यह मेकओवर ऐसे समय में किया गया जब नेकर  फैशन में है । स्वयंसेवक तब से नेकर पहन रहें जब सिर्फ बच्चें ही नेकर पहनते थे पर अब तो आलाम यह है कि बच्चों के साथ-साथ अब हर कोई नेकर पहनता है। स्वयंसेवको को लगता है कि लोग उनके ड्रेस कोड का मज़ाक़ उड़ाने लगे थे? मज़ाक़ तो पहले भी उड़ता होगा और आज भी उड़ ही रहा है । आरएसएस के इस मेकओवर से उनपर फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल नेटवरकिंग साइट्स पर #NikarNahiSochBadlo का हैशटैग काफी ट्रेंड किया । यह कहना गलत नहीं की आज के समय में आरएसएस को नेकर की नहीं बल्कि सोच बदलने की ज्यादा जरूरत है । देश को उनके नेकर से नहीं बल्कि उनकी सोच से दिक्कतें है या कहें खतरा है !
1925 में आरएसएस की स्थापना उपनिवेशवाद के विरोधी संगठन के तौर पर हुई थी। इसने मूलतः हिंदू ख्याति और भारतीय इतिहास को ध्यान में रखकर एक अलग विचार को आगे बढ़ाया। ऐसा कहा गया है कि भारत के यश भरे दिन तब खत्म हो गए जब 8वीं सदी में मुस्लिमों और ईसाइयो द्वारा उसपर आक्रमण किया गया। आरएसएस मानता है कि अगर सभी भारतीयों को यह बताया जाए और उन्हें इसपर यकीन हो जाए कि इतिहास में कभी वह हिंदू ही थे, यह देश को एक कर सकता है। आरएसएस के महासचिव सुरेश भैयाजीजोशी ने रॉयटर्स को बताया था कि हिंदुस्तान का मतलब हिंदुओं की भूमि, इसलिए यहां रहने वाले लोग स्वतः पहले हिंदू हैं। आप संघ से जुड़े किसी व्यक्ति से अगर संघ को लेकर सवाल करते हैं वो आपसे ये प्रश्न ज़रूर पूछेंगे  कि हिंदू शब्द को लेकर आपका आडिया कितना क्लियर ।
अपने जन्म से लेकर आज तक आरएसएस पर 4 बार बैन लग चुका है। इसमें से एक बार तब जब संगठन के एक पूर्व सदस्य ने 1948 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या कर दी। उपलब्ध स्त्रोतों से मिली जानकारी के मुताबिक गांधीजी, आरएसएस के प्रशंसक नहीं थे। काफी लंबे समय तक आरएसएस चुपचापकाम करता रहा इसलिए स्वाधीनता आंदोलन के दौरान आरएसएस की भूमिका की विशेष चर्चा तत्कालीन साहित्य में नहीं है. चूंकि संघ, राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल नहीं था इसलिए इस आंदोलन में उसकी भूमिका के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता ।
हरिजनके 9 अगस्त 1942- के अंक में गांधी लिखते हैं, ‘‘मैंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसकी गतिविधियों के बारे में सुना है. मैं यह भी जानता हूं कि यह एक सांप्रदायिक संगठन है.’’ उन्होंने यह टिप्पणी दूसरेसमुदाय के खिलाफ नारेबाजी और भाषणबाजी के संबंध में एक शिकायत के प्रति उत्तर में कही.
इसमें गांधी, आरएसएस कार्यकर्ताओं के शारीरिक प्रशिक्षण की चर्चा कर रहे हैं जिसके दौरान कार्यकर्ता ये नारे लगाते थे कि यह राष्ट्र केवल हिंदुओं का है और अंग्रेजों के देश से जाने के बाद हम गैर-हिंदुओं को अपने अधीन कर लेंगे. सांप्रदायिक संगठनों द्वारा की जा रही गुंडागर्दी के संबंध में वे लिखते हैं, ‘‘मैंने आरएसएस के बारे में बहुत सी बातें सुनी हैं. मैंने यह भी सुना है कि जो शैतानी हो रही है, उसकी जड़ में संघ है’’, (कलेक्टिव वर्क्स ऑफ गांधी, खंड 98, पृष्ठ 320-322).
आरएसएस के संबंध में गांधीजी के विचारों का सबसे विश्वसनीय स्त्रोत उनके सचिव प्यारेलाल द्वारा वर्णित एक घटना है. सन् 1946 के दंगों के दौरान, प्यारेलाल लिखते हैं, ‘‘गांधीजी के साथ चल रहे लोगों में से किसी ने पंजाब के शरणार्थियों के एक महत्वपूर्ण शिविर वाघा में आरएसएस के कार्यकर्ताओं की कार्यकुशलता, अनुशासन, साहस और कड़ी मेहनत करने की क्षमता की तारीफ की. गांधीजी ने तुरंत पलटकर कहा, ‘पर यह न भूलो कि हिटलर के नाजियों और मुसोलिनी के फासीवादियों में भी ये गुण थे’. गांधी आरएसएस को तानाशाहीपूर्ण सोच वाला एक सांप्रदायिक संगठन मानते थे.’’ (प्यारेलाल, महात्मा गांधी: द लास्ट फेज, अहमदाबाद, पृष्ठ 440).
आजादी के बाद, दिल्ली में हुई हिंसा के संदर्भ में (राजमोहन गांधी, मोहनदास, पृष्ठ 642), ‘‘गांधी जी ने आरएसएस के मुखिया गोलवलकर से हिंसा में आरएसएस का हाथ होने संबंधी रपटों के बारे में पूछा. आरोपों को नकारते हुए गोलवलकर ने कहा कि आरएसएस, मुसलमानों को मारने के पक्ष में नहीं है. गांधी ने कहा कि वे इस बात को सार्वजनिक रूप से कहें. इस पर गोलवलकर का उत्तर था कि गांधी उन्हें उद्धत कर सकते हैं और गांधीजी ने उसी शाम की अपनी प्रार्थना सभा में गोलवलकर द्वारा कही गई बात का हवाला दिया. परंतु उन्होंने गोलवलकर से कहा कि उन्हें इस आशय का वक्तव्य स्वयं जारी करना चाहिए. बाद में गांधी ने नेहरू से कहा कि उन्हें गोलवलकर की बातें बहुत विश्वसनीय नहीं लगीं.’’
इन बातों को बताने का मुल कारण यह है कि जिस गांधी को आरएसएस शुरू से अपना विरोधी या कहें आलोचक मानते आया हैं, आज वही आरएसएस गांधी से प्रमाणपत्र चाहता है. इसलिए उनके कहे वाक्य को अधूरा प्रस्तुत किया जा रहा है. मोदी सरकार के सत्ता संभालने के बाद से ही, गांधीजी को इस रूप में प्रस्तुत करने के प्रयास हो रहे हैं, जिससे आरएसएस को लाभ हो. पहले, गांधी जयंती (2 अक्टूबर) से ‘‘स्वच्छता अभियान’’ की शुरूआत की गई. फिर, यह दावा किया गया कि गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का आरएसएस से कोई लेनादेना नहीं था. अब गांधी से इस आशय का प्रमाणपत्र हासिल करने के प्रयास हो रहे हैं कि ‘‘आरएसएस बहुत अच्छा संगठन है’’. इस आरएसएस की रणनीति कहना गलत नहीं होगा ।
आरएसएस के छिपा हुए एजेंडा को दुनिया ने तब जाना जब राम माधव के 'अखंड भारत' वाले बयान से आरएसएस और बीजेपी ने उन्हें किनारा कर दिया। माधव ने कहा, आरएसएस को अभी भी लगता है कि करीब 60 साल पहले यह हिस्से जो कुछ ऐतिहासिक वजहों से अलग हो गए थे, वह फिर से सद्भावना के साथ एक साथ हो जाएंगे और अखंड भारत का निर्माण करेंगे। इसके साथ ही माधव ने यह भी कहा कि वह यह विचार बतौर आरएसएस सदस्य ही दे रहे हैं। उन्होंने साफ किया कि इसका मतलब यह नहीं है कि इसे हासिल करने के लिए हम किसी देश के साथ युद्ध करेंगे या उस पर कब्ज़ा कर लेंगे, बिना किसी जंग के आपसी सहमति से यह मुमकिन हो सकता है। वहीं राम माधव के बयान पर आरएसएस का कहना था कि, अखंड भारत बनाने का विचार राजनीतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक है। उन्हें अपनी बात रखने का पूरा अधिकार है, लेकिन बीजेपी और सरकार यह अच्छे से जानती है कि भारत और पाकिस्तान दो स्वायत्त देश हैं, हालांकि आरएसएस के पूर्व प्रवक्ता और बीजेपी के महासचिव राम माधव अब भी अपने बयान पर कायम हैं।
राम माधव ने बाद में लिखा कि भारत, पाक और बांग्‍लादेश बल पूर्वक नहीं बल्‍कि लोकतांत्रिक ढंग से एक होंगे। माधव ने जिस बात का खुलासा नहीं किया वो यह है कि आरएसएस आज भी खुद को विभाजन को भुला नहीं पाई है। विभाजन जिसके लिए उसने मुसलमानों को माफनहीं किया। आरएसएस पाकिस्‍तान के खिलाफ नफरत पाले बैठा है, जो गाहे बगाहे उसके बयानों से पता भी चलता है। अगर उन्‍होंने मौका मिल जाए तो वे इस देश को दुनिया के नक्‍शे से मिला देंगे। वे ऐसा इसलिए करेंगे क्‍योंकि पाकिस्‍तान का अस्‍त‍ित्‍व आरएसएस और हिंदुत्‍व के उस तर्क के खिलाफ है, जिसके मुताबिक हिमालय से लेकर सिंधु नदी और समुद्र तक रहने वाले सभी लोग हिंदू हैं।

यह क्षेत्र एक देश है और सभी एक ही वंश के हैं। आरएसएस की मानें तो यहां हम सभी सदियों से एक सभ्‍यता के तौर पर रह रहे हैं और हम सबकी जीवनशैली एक ही है। जो लोग इस्‍लाम या ईसाई बन गए, वे बाहर से नहीं आए, वे तो यहां वैदिक काल से रह रहे थे। वे भी हिंदू हैं। आरएसएस के मुताबिक, धार्मिक तौर पर अलग होने के बावजूद हम सभी की नसों में एक ही खून बहता है, इसलिए हम एक हैं और हमें एक साथ रहना चाहिए। इसी वजह से विभाजन भी हमारी सभ्‍यता के ढांचे पर एक चोट है। इसलिए, आरएसएस को पहले सोच अपनी सोच,अपने विचार बदलने की जरूरत है न की नेकर की ।

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